भारतीय पुलिस और महिला कर्मचारी

Bravo Indian Female Cop
भारतीय महिलाएं कुल अनुपात में देश की आधी आबादी हैं, लेकिन पुलिस फोर्स में उनकी भागीदारी सिर्फ़ सात फ़ीसदी ही है।
अगर हम राज्यों की बात करें तो 10 राज्य ऐसे हैं जहां पुलिस में महिलाएं 5% से भी कम हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों में तो ये आंकड़े और चौंकाने वाले हैं।नगालैंड की पुलिस में महज़ 1.05% और असम में सिर्फ़ 0.93% महिलाएं हैं।
महिला पुलिस कर्मचारी आपको कम ही दिखती होंगी, लेकिन क्या आपने ये कभी सोचा है कि उनकी तादाद इतनी कम क्यों है।
बात की जाए प्रमोशन की तो पुलिस में जितनी महिलाएं हैं, उनमें से भी सिर्फ़ 10% महिला पुलिसकर्मी उच्च पदों तक पहुंच पाती हैं। 90 प्रतिशत से ज़्यादा महिलाएं कॉन्स्टेबल ही रह जाती हैं। अमूमन वो इसी पद पर भर्ती होती हैं और इस पद पर रिटायर हो जाती हैं। ऐसे थाने ना के बराबर हैं, जहां की प्रमुख महिला होती हैं।
ऐसे हालात तब हैं जबकि भारत सरकार ने 2009 में पुलिस में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को 33% तक करने का टारगेट सेट किया था, ताकि पुलिस में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाया जा सके और पुलिस थानों को जेंडर-सेंसेटिव जगह बनाया जा सके, जिससे पुलिस की छवि बेहतर हो, महिलाओं की सुरक्षा को पुख़्ता किया जा सके और कामकाजी व अन्य महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों पर और बेहतर तरीक़े से लगाम लगाई जा सके।
भारत के केंद्रशासित प्रदेशों के अलावा नौ राज्यों ने इस 33% आरक्षण के मॉडल को अपनाया। इसके बाद 2013 में भारत के गृह मंत्रालय ने हर पुलिस थाने में कम से कम तीन महिला सब इंस्पेक्टर और दस महिला पुलिस कॉन्स्टेबल नियुक्त करने की सिफ़ारिश की, ताकि महिला हेल्प डेस्क हर वक़्त चालू रह सके।
लेकिन तमाम तरह की इन पहलों के बावजूद पुलिस में महिलाओं की संख्या बढ़ाने के टारगेस्ट्स काग़ज़ों तक ही सीमित रहे.
लेकिन सवाल ये है कि आखिर वो कौन-सी वजहें हैं जो पुलिस में महिलाओं के लिए चुनौतियां पैदा करती हैं?
तकनीकी तौर पर ये व्यवसाय पुरुषों के लिए बना था, इसलिए हर चीज़ पुरुषों को ध्यान में रखकर बनाई गई। पुलिस की नीतियां, इंफ्रास्ट्रक्चर और हथियार पुरुषों को ध्यान में रखकर बनाए गए। लेकिन अब जब महिलाएं इस पेशे में आने लगी हैं तो उनके मुताबिक माहौल को ढालना होगा, ताकि वो पुरुषों के साथ उतनी ही दक्षता के साथ काम कर सकें और जनता की सेवा कर सकें।”
2016 में हुई ‘नेशनल कांफ्रेंस फॉर विमन इन पुलिस’ के दौरान एक स्टडी की गई थी। इस स्टडी में महिला पुलिस कर्मियों से उनकी परेशानियों के बारे में पूछा गया था। इसके जवाब में महिला पुलिस कर्मियों ने अपनी परेशानियां बताईं।
पुलिस में महिलाओं को अक्सर डेस्क जॉब दे दिए जाते हैं। उन्हें फ़ील्ड में कम भेजा जाता है। सीमित पदों पर महिलाओं की भर्तियां होती हैं।
बॉर्डर आउट पोस्ट में महिला और पुरुष पुलिस कर्मियों की बैरेक एक ही कंपाउंड में होती हैं। दोनों की बैरेक अलग-अलग तो होती हैं, लेकिन उनके बीच बाउंड्री वॉल या फेंसिंग नहीं होती इस लिए आमने-सामने सब दिखाई देता है। कई बार दरवाज़े और पर्दे नहीं होते। ऐसे हालात में महिला पुलिस कर्मियों के लिए काफी असहज स्थिति रहती है कियूंकि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को ज़्यादा प्राइवेसी की ज़रूरत होती है, जो उन्हें वहां नहीं मिल पाती।
के थानों और ड्यूटी की जगहों पर प्रोपर शौचालय नहीं होते। कार्यस्थल पर अक्सर महिलाओं के लिए अलग शौचालय नहीं होते। जो होते हैं उनके अंदर और बाहर कई दफा लाइट नहीं होती। वहां डस्टबिन नहीं रखे होते।सेनेटरी नेपकिन नष्ट करने की जगह नहीं होती। पेशाब ना आए इसलिए वो कम से कम पानी पीती हैं, जिसकी वजह से कई बार बेहोश हो जाती हैं।
कई बार कर्मचारियों के आने-जाने के लिए ट्रकों का इस्तेमाल किया जाता है। बसें और अन्य हल्के वाहन नहीं होते। ट्रकों पर महिलाओं को पुरुषों की तरह कूदकर चढ़ना उतरना पड़ता है। सीढ़ी भी नहीं होती। ऐसे में कई बार उन्हें पीरियड्स में काफ़ी दिक़्क़त होती है।
इसके अलावा बुलेट प्रूफ जैकेट काफ़ी भारी होते हैं और वो महिलाओं को फिट नहीं होते। वो पुरुषों के शरीर के मुताबिक़ बने होते है। कई बार वो टाइट होते हैं, जिससे महिलाओं को शरीर में दर्द और भागते वक़्त सांस फूलने की दिक्क़त होती है। ढीले होते हैं तो उन्हें ड्यूटी करने में दिक्क़त होती है। जैकेट पहने पर महिलाओं के चेस्ट की वजह से एक गैप बनता है। जिससे उन्हें गोली लगने का ख़तरा रहता है। वैसे विदेशों में भी कई जगह ये दिक्कत है। वहां भी बुलेट प्रूफ जैकेट और बॉडी प्रोटेक्टर पुरुषों के शरीर के मुताबिक बने होते हैं। वहां तो कुछ महिलाएं इन परेशानियों से बचने के लिए ब्रेस्ट रिडक्शन सर्जरी तक करा लेती हैं,ऐसा भी कहा जाता है ।
दंगों के वक़्त इस्तेमाल की जाने वाली चीज़ों को महिलाओं की हाइट और साइज़ के हिसाब से नहीं दिया जाता। कई बार हथियार इतने भारी होते हैं कि उनकी कलाई, कमर और कंधे दर्द होने लगते हैं। उन्हें कुछ भी फिट नहीं होता। वर्दी पुरुषों के शरीर के हिसाब से बनी होती है। कई जगह फीज़िकल ट्रेनिंग में वाइट रंग की पेंट पहननी होती है. जो पीरियड्स के वक़्त महिलाओं को असहज करती है।
बैरेक में रहने पर बच्चों को साथ रखने की जगह नहीं होती। महिलाएं संख्या में कम हैं, इस वजह से उन्हें वक़्त पर छुट्टियां मिलने में दिक्क़त होती है। बॉर्डर में पोस्टिंग होने पर बच्चों से दूर रहना पड़ता है। इंटरनल चाइल्ड केयर सपोर्ट सिस्टम नहीं होता। स्कूल और क्रच नहीं होते। ज़्यादा वक़्त गृह ज़िले में पोस्टिंग नहीं मिलती। कई बार पति-पत्नी को साथ पोस्टिंग नहीं मिलती। कुछ मामलों में महिलाओं को इंफर्टिलिटी की समस्या हो जाती है और शादियां टूटती है।
ऐसी और भी कई चुनौतियां हैं जो महिलाओं के काम को प्रभावित करती हैं। अक्सर सत्ता के नशे में मगरूर नेता भी महिला पुलिस कर्मचारियों के साथ बदसलूकी करते हैं, जैसा बुलंदशहर की सीओ श्रेष्ठा ठाकुर के मामले में हुआ था।
पुलिस ने जिले के स्याना कस्बे में बीजेपी की जिला पंचायत सदस्य के पति प्रमोद लोधी का ट्रैफिक रूल तोड़ने पर चालान किया था। चालान काटे जाने से नाराज प्रमोद पुलिस से उलझ गया। हाथापाई की नौबत आ गई। जिसके बाद पुलिस ने बाइक सीज कर प्रमोद को गिरफ्तार कर लिया था। इसी बात को लेकर बीजेपी कार्यकर्ताओं ने श्रेष्ठा ठाकुर के साथ बदसलूकी की थी। इस घटना का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। प्रमोद को जब कोर्ट लाया गया, तब काफी संख्या में बीजेपी कार्यकर्ता वहां पहुंच गए और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। इस दौरान बीजेपी कार्यकर्ताओं और सीओ श्रेष्ठा ठाकुर के बीच जमकर बहस हुई थी। बीजेपी नेता को सबक सिखाने वाली महिला पुलिस अधिकारी श्रेष्ठा ठाकुर का बाद में बुलंदशहर से बहराइच तबादला कर दिया गया था। ठाकुर ने स्थानीय बीजेपी नेता समेत पांच लोगों को पुलिस कार्यवाही में दखल देने और पुलिस अधिकारी से बदतमीजी करने के आरोप में जेल भेज दिया था।
द कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (CHRI) संस्था की एक रिसर्च के मुताबिक़ पुलिस में काम करने वाली महिलाओं को भर्ती से लेकर पोस्टिंग, प्रमोशन, ट्रेनिंग और सुविधाओं की कमी की वजह से पेश आने वाली चुनौतियों को दूर कर महिलाओं की स्थिति को बेहतर किया जा सकता है। इन चुनौतियों को कैसे दूर किया जा सकता है, इसके लिए CHRI ने एक एक्शन प्लान तैयार किया है। इसे ‘ मॉडल पॉलिसी फॉर विमन इन पुलिस इन इंडिया ‘ नाम दिया गया है। ये पॉलिसी पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों और नेतृत्व से सलाह मशविरा कर तैयार की गई है। साथ ही इसमें पुलिस और सिविल सोसाइटी के जेंडर एक्सपर्ट्स से भी सलाह ली गई है।
इस पॉलिसी के मुताबिक़:
महिलाओं को पुलिस में बराबर मौक़े मिले। उनकी संख्या बढ़ाई जाए। आरक्षण के टारगेट को पूरा करने के लिए सही एक्शन प्लेन बनाया जाए।
काम के माहौल को बेहतर बनाया जाए। ट्रांस्फर पॉलिसी को ठीक किया जाए, फेमिली फ्रेंडली पॉलिसी बनाई जाएं, यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ ज़ीरो टॉलरेंस हो। पुलिस में महिलाओं की अधिक तादाद के बारे में सोचा जाए।
जेंडर सेंसटाइज़ेसन की ट्रेनिंग वक़्त-वक़्त पर हो। जेंडर बजटिंग हो। महिला पुलिस के लिए स्टेट फोरम बने।
एक्शन प्लेन को लागू करने के लिए एक विशेष टीम हो, जो सुनिश्चित करे कि चीज़ें सही तरीक़े से हो रही हैं।
CHRI ने केंद्र और राज्य सरकारों को उसकी ‘मॉडल पॉलिसी’ पर विचार करनी की अपील की है। CHRI का मानना है कि अगर इस पॉलिसी को अपनाया जाता है तो पुलिस में महिलाओं की भागीदारी को बहुत हद तक बढ़ाया जा सकता है । पुलिस में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिए और युवा महिलाओं को इस पेशे की ओर आकर्षित करने के लिए अधिक से अधिक विज्ञापन दिए जाने चाहिए।
इन सारे प्रयासों से महिला पुलिस को और भी बेहतर कार्यक्षमता के साथ काम करने का बल मिलेगा।