जूझती पुलिस टूटता मनोबल-आत्म्ह्त्या ही क्यूँ ?

Report: Parveen Komal 9876442643

आमतौर पर किसी भी सरकारी विभाग में कार्यत किसी भी व्यक्ति की ड्यूट आठ घंटे की होती है, वहीं प्राइवेट संस्थानों में भी वर्किंग टाइम आठ से नौ घंटे के बीच का रही रहता है लेकिन पुलिस कर्मियों को रोजाना 14 घंटे से ज्यादा ड्यूटी करनी पड़ती हैं। अपनी जान जोखिम में डाल कर , अपनी रातों की नींद हराम करके समाज को सुख की नींद प्रदान करने वाली खाकी के पीछे छिपे दर्द की दास्तान आपको बताते हैं । क्या हमारे पुलिस कर्मी इंसान नहीं ? क्या उनके प्रति हमारा और हमारे समाज का कोई कर्तव्य नहीं ? क्या समाज को नहीं चाहिए कि इनके दुख सुख को अपना बनाया जाए। पेश है दिलो दिमाग को झकजोर देने वाली ये खास रिपोर्ट। 

उत्तर प्रदेश में सितंबर में 2014 बैच के आईपीएस अधिकारी सुरेंद्र कुमार दास ने अधिक मात्रा में सल्फास निगल लिया, जिसके बाद अस्तपाल में उनकी इलाज के दौरान मौत हो गई. मौत के पीछे सुरेंद्र दास का सुसाइड नोट सामने आया। 

6 सितंबर 2017 को मुंबई ठाणे के कलवा में एक महिला पुलिस कांस्टेबल ने कलवा के मनीषा नगर में अपने घर में आत्महत्या कर ली थी। 

25 जुलाई 2018 को झारखंड के धुरकी थाना में  हवलदार सूर्यदेव महतो ने थाना परिसर स्थित बैरक में एके 47 से खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली।

6 अगस्त 2018 को  हरिद्वार के  बहादराबाद थाने में तैनात एक महिला उपनिरीक्षक ने फांसी लगा  कर आत्महत्या कर ली । सहसपुर देहरादून निवासी आंचल फरासी, उम्र 30 वर्ष उत्तराखण्ड पुलिस में उपनिरीक्षक के पद पर कार्यरत थी। 

30 सितंबर को बाराबंकी की हैदरगढ़ कोतवाली में हड़कंप मच गया. यहां एक महिला कॉन्स्टेबल मोनिका ने पंखे से झूल

कर आत्महत्या कर ली.

सितंबर में ही यूपी के बांदा जिले के कमासिन थाने में तैनात महिला कांस्टेबल नीतू शुक्ला का शव संदिग्ध परिस्थितियों में थाना परिसर के आवास में लटकता पाया गया.

फर्रुखाबाद में 2 अक्टूबर को केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री शिवप्रताप शुक्ला की सुरक्षा ड्यूटी में तैनात दारोगा तार बाबू तरुण ने अपनी सर्विस रिवाल्वर से खुद को गोली मार ली.

इसी तरह पुलिस के कई  अधिकारियों और जवानों के आत्महत्या करने के मामले सामने आए हैं. इन सिर्फ काम का दबाव ही नहीं, पुलिसकर्मियों के तनाव और हताशा के और भी कई कारण हैं.पिछले 5 महीने

में ही यूपी पुलिस ने अपने दो आईपीएस अफसरों को खो दिया. इनमें राजेश साहनी, जो भारतीय पुलिस सेवा में एक उच्च अधिकारी थे. वह एटीएस के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात थे. उन्होंने इसी साल 29 मई को लखनऊ के गोमतीनगर स्थित अपने दफ्तर में खुद को गोली मार ली.

क्या कारण होते हैं

आखिर क्या कारण होते हैं कि एक अच्छा भला इंसान यूं दुनिया छोडने का मन बना लेता है।

आज हर व्यवसाय में मानसिक तनाव है. पुलिस महकमा भी इससे अछूता नहीं रह सकता.”

इस तनाव को सहने और उससे उबरने की हर एक की क्षमता अलग अलग होती है. पुलिस महकमे में ज़्यादातर कर्मचारी और अधिकारी इस तनाव को सहन कर सकते हैं. बहुत लोग ऐसे हैं, जो इसे सह नहीं पाते और नकारात्मक मानसिकता के शिकार होते है।

नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के मुताबिक़, देश में पुलिसकर्मी और अधिकारियों की आत्महत्या की घटनाओं में महाराष्ट्र पहले स्थान पर है. पुलिस जवानों और अफ़सरों को असलहे आसानी से मिल जाते हैं. नकारात्मक मानसिकता की स्थिति में ख़ुदकुशी या हत्या जैसे गंभीर अपराधों में इन हथियारों का इस्तेमाल होने की पूरी संभावना रहती है.

मध्य प्रदेश में बीते 33 महीनों में 722 पुलिस कर्मचारियों की मृत्यु ड्यूटी पर हुई है। जबकि 22 ने सुसाइड की है। ऐ आंकड़े सरकार और हमारे लिए चौंकाने वाले हैं। जो लोग दिन रात जाग कर जनता की सुरक्षा कर रहे हैं, वह तीव्र दबाव में काम कर रहे है। जिससे उनका मानसकि तनाव का स्तर बढ़ता जा रहा है। औसतन एक पुलिस कर्मचारी दिन में 15 घंटे की ड्यूटी करता है। लंबे समय तक ड्यूटी करने के चलते पुलिस कर्मचारियों की पारिवारिक जिंदगी और उनकी सेहत पर इसका विपरीत असर पड़ रहा है। मध्यप्रदेश के पुलिसकर्मी अवसाद और

मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं। 2013 से अब तक पुलिसकर्मियों की आत्महत्या करने का आंकड़ा हर साल 30 फीसदी बढ़ रहा है। उधर, पुलिसकर्मियों में हार्टअटैक के मामले भी बढ़े हैं। पिछले चार साल में हर साल हार्टअटैक से मौत के केस 81 प्रतिशत की दर से बढ़े हैं। ।

मार्च 2018 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक रिपोर्ट के माध्य्म से बताया कि पिछले छह वर्षों में 700 केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल कर्मियों ने आत्महत्या की। जून 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच सालों में 40 से अधिक दिल्ली पुलिस कर्मियों ने आत्महत्या की।

दुखद घटना क्रम

12 मई 2018 को महाराष्ट्र एटीएस के पूर्व चीफ हिमांशु रॉय ने आत्महत्या कर ली थी।

5 सितंबर 2018 को यूपी के कानुपर शहर में एसपी पूर्वी पद पर तैनात 2014 बैच के आईपीएस सुरेंद्र दास ने सरकारी आवास में जहरीला पदार्थ खा लिया था।

लुधियाना की सेंट्रल जेल में बंद पंजाब पुलिस के निलंबित एएसआई गुरकेवल सिंह ने  फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी।

26 जनवरी 2018 की परेड में जगराओं के सीनियर सेकेंडरी स्कूल में चल रहे सब डिविजन समागम के दौरान पंजाब पुलिस के सिपाही मनजीत सिंह ने ख़ुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी ।

11 जून 2017 को लुधियाना-फिरोजपुर रोड़ पर स्थित मंडी जगराओं इलाके के थाना जोधां के रेस्ट रूम में महिला पुलिस कर्मचारी का शव संदिग्ध हालत में कमरे के पंखे से लटकता हुआ मिला था । पुलिस के मुताबिक, मृतका ने पंखे से फंदा लगाकर जीवन लीला खत्म कर ली थी ।

25 मई 2017 को बरनाला के हमीदी वासी हवलदार बरिन्द्र जीत सिंह जोकि थाना पक्खो कैंचियां में तैनात था ने जहरीली चीज पीकर आत्महत्या कर ली थी।

29 जनवरी 2018 को फरीदकोट के जैतो में कॉलेज में झगड़े को निपटाने पंहुचे डीएसपी बलजिंदर संधु ने खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी । बठिंडा के आईजी मुखविंद्र शीना ने तब कहा था कि पुलिस कर्मचारी मानसिक तनाव के चलते इस तरह का कदम उठा रहे हैं।

थाना खिलचियां के गांव धूलका के रहने वाले हैड कांस्टेबल निर्मल सिंह ने कोई जहरीला पदार्थ निगल आत्महत्या कर ली थी। निर्मल सिंह भी मानसिक तनाव में चल रहा था।

भारत के लिए दो बार ओलिम्पिक में हिस्सा ले चुके पंजाब पुलिस में अधीक्षक पद पर कार्यरत नरेंद्र सिंह (46) को शनिवार को पंजाब आर्म्ड पुलिस परिसर में स्थित अपने कमरे में पंखे से झूलता पाया गया था । सिंह को जानने वालों का कहना है कि वह काफी समय से अवसाद में जी रहे थे। सिंह ने 1998 में अर्जुन पुरस्कार जीता था। वह 1992 के बार्सिलोना ओलिम्पिक और 1996 के अटलांटा ओलिम्पिक में जूडो में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके थे

गुरदासपुर के थाना दीनानगर के अधीन आते गांव अब्बलखैर में पंजाब पुलिस के जवान ने जहर निगल कर आत्महत्या कर ली थी।

मोगा जिले के गांव माहला कलां में मानसिक परेशानी के चलते फरीदकोट की माडर्न जेल में तैनात वार्डन (सिपाही) जतिन्द्र सिंह (33) ने घर के चौबारे में फंदा लगाकर खुदकुशी कर ली थी।

होशियारपुर-मैंहगरोवाल रोड पर गांव अज्जोवाल में एक पूर्व सैनिक जो कुछ समय पहले ही पंजाब पुलिस में ट्रेनी कांस्टेबल भर्ती हुआ था, ने रविवार को घर पर सर्विस रिवाल्वर से आत्महत्या कर ली थी।

6 जुलाई 2016 को कर्नाटक के बेलगावी शहर में पुलिस के डीसीपी के कथित आत्हत्या के बाद, 8 जुलाई 2016 को उसी रैंक के एक अन्य अधिकारी ने राज्य के कोडागू जिले में आत्महत्या कर ली थी।

29 मई 2018 को भी उत्तर प्रदेश पुलिस के पीपीएस अधिकारी और उत्तर प्रदेश आतंकवाद निरोधक दस्ता (यूपी एटीएस) में अपर पुलिस अधीक्षक (ASP) के पद पर तैनात खुशमिजाज राजेश साहनी ने अज्ञात कारणों से अपने कार्यालय में गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी।

उत्तर प्रदेश के आलमबाग में एक दरोगा राजरतन वर्मा  ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। ये ऐसा पहला मामला नहीं है जब किसी पुलिसवाले ने आत्महत्या की हो। इसके पहले भी कई दरोगा, सिपाही और यहां तक की यूपी पुलिस के उच्च अधिकारी तक मौत को गले लगा चुके हैं।

मार्च 2018 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक रिपोर्ट के माध्य्म से बताया कि पिछले छह वर्षों में 700 केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल कर्मियों ने आत्महत्या की। जून 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच सालों में 40 से अधिक दिल्ली पुलिस कर्मियों ने आत्महत्या की।

12 मई 2018 को महाराष्ट्र एटीएस के पूर्व चीफ हिमांशु रॉय ने आत्महत्या कर ली थी।

5 सितंबर 2018 को यूपी के कानुपर शहर में एसपी पूर्वी पद पर तैनात 2014 बैच के आईपीएस सुरेंद्र दास ने सरकारी आवास में जहरीला पदार्थ खा लिया था।

6 जुलाई 2016 को कर्नाटक के बेलगावी शहर में पुलिस के डीसीपी के कथित आत्हत्या के बाद, 8 जुलाई 2016 को उसी रैंक के एक अन्य अधिकारी ने राज्य के कोडागू जिले में आत्महत्या कर ली।

हरियाणा में भी  पुलिसकर्मियों की आकस्मिक मौत का ग्राफ बढ़ रहा है। पांच साल में 194 पुलिसकर्मियों की विभिन्न कारणों से मौत हो गई। जो औसत से अधिक है। पुलिसकर्मियों की आकस्मिक मौत का ग्राफ हिसार में सर्वाधिक है। रेंज के हिसार जिले में एक ही दिन में तीन पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी।

दिल्ली पुलिस के जवान भी ड्यूटी से पैदा हुई तमाम तरह की परेशानियों के बोझ तले दब कर रह गए हैं। किसी को कोई बीमारी निगल लेती है तो कोई हार्ट अटैक का शिकार बनता है। पुलिस मुख्यालय को मिली रिपोर्ट के मुताबिक हर महीने दिल्ली पुलिस के औसतन 20 कर्मचारी मौत के मुंह में जा रहे हैं। पुलिसकर्मियों का कहना है कि यह सब ड्यूटी से उपजा तनाव है। इस तनाव को कम करने के लिए दिल्ली पुलिस में फिलहाल कोई सिस्टम नहीं है और समस्या नासूर बनती जा रही है।

2009 में दिल्ली पुलिस के  रोहतास नाम के हैड कांस्टेबल ने संभवत: अवसाद की वजह से अपनी जीवन लीला खत्म कर ली थी।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि रोहतास ने कनॉट प्लेस में बाराखम्बा रोड पुलिस थाने में अपने सर्विस रिवाल्वर से आधी रात को खुद को गोली मार ली थी। वह 1980 में दिल्ली पुलिस की सेवा में नियुक्त हुआ था।

2015 में दिल्ली पुलिस के एसीपी अमित सिंह ने रात को अपनी सर्विस रिवॉल्वर से गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी । वह मूलरूप से बिहार के छपरा के रहने वाले थे।

2016 में दिल्ली पुलिस के एक कांस्टेबल सुभाष ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली थी।

2016 में ही  दिल्ली पुलिस के 41 साल के एक कांस्टेबल ने उत्तर-पश्चिम दिल्ली के प्रशांत विहार इलाके में आपदा प्रबंधन नियंत्रण कार्यालय में छत से लगे एक पंखे से लटक कर कथित तौर पर खुदकुशी कर ली थी. 1998 बैच का कांस्टेबल विनोद आपदा प्रबंधन नियंत्रण कार्यालय में तैनात था और कार्यालय भवन के एक कक्ष में रहता था. वहां उसने खुदकुशी कर ली.

2016 में दिल्ली पुलिस के पूर्वी जिला कार्यालय की संचार शाखा के कांस्टेबल संजय प्रसाद ने पटेल चौक स्टेशन पर दिल्ली मेट्रो के सामने कूद कर आत्महत्या कर ली थी।

2017 में दिल्ली पुलिस के एक कांस्टेबल अनिल खोखर (29) ने मध्य दिल्ली के दरियागंज थाने के बैरक में अपनी सर्विस पिस्तौल से कथित तौर पर गोली मारकर खुदकुशी कर ली थी।

2017 में ही जैतपुर पुलिस थाने से सम्बद्ध दिल्ली पुलिस के एक हेड कान्स्टेबल ने मंगलवार को कथित रूप से स्वयं को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी. देवेंद्र सिंह रात आठ बजे से आपातकालीन ड्यूटी पर थे और उन्होंने कार्य के लिए शाम करीब छह बजे एक सर्विस रिवाल्वर जारी कराई. पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि वह शाम साढ़े छह बजे और रात के आठ बजे के बीच दक्षिण-पूर्व दिल्ली के कालिंदी कुंज पुल के पास यमुना के तट पर गए और स्वयं को गोली मारकर आत्महत्या कर ली।

2017 में ही यातायात इकाई में तैनात दिल्ली पुलिस के 32 वर्षीय कॉन्‍स्टेबल परविंदर ने बंगला साहिब गुरूद्वारा के निकट स्थित सेंट्रल रेंज में पुलिस उपायुक्त (यातायात) के कार्यालय में अपनी सर्विस रिवाल्वर से  स्वयं को गोली मार ली थी।

30 अक्टूबर 2018 को दिल्ली पुलिस के हैड कांस्टेबल ज्ञानेंद्र राठी ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली।

दिल्ली पुलिस के हरभगवान (46) नामक एक हेड कॉन्स्टेबल ने ड्यूटी के दौरान अपनी सर्विस रायफल से खुद को गोली मार कर कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी।  हेड कॉन्स्टेबल पिछले करीब ढाई साल से शाहाबाद डेयरी पुलिस थाने में पदस्थ था।

दिल्ली के चितरंजन पार्क पुलिस थाने में जिला जांच इकाई के साथ तैनात इंस्पेक्टर कुशल गांगुली ने शाम लगभग 5.50 बजे अपने नाम रिवाल्वर जारी कराया और 10 मिनट बाद उसने वाशरूम के अंदर खुद को गोली मार ली थी।

दिल्ली पुलिस के एक हेड कांस्टेबल जितेंद्र (48)  ने अपनी सर्विस रिवॉल्वर गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी । जितेंद्र पश्चिमी दिल्ली के झड़ोदा कलां में पुलिस प्रशिक्षण कॉलेज (पीटीसी) में तैनात था।

दिल्ली के दक्षिण रोहिणी पुलिस थाने में तैनात दिल्ली पुलिस के सहायक उप निरीक्षक (एएसआई) रमेश  ने अपनी सर्विस रिवाल्वर से खुद को गोलीमार आत्महत्या कर ली थी।

पुलिस नियंत्रण कक्ष में तैनात दिल्ली पुलिस के एक हेड कांस्टेबल पवन शर्मा ने हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के सामने छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली थी।

 भारी मानसिक तनाव

दिन के 24 घंटे में से 12 घंटे मोबाइल फोन घनघनाने के साथ ही इस दौरान दिन भर चीखने वाले वायरलेस सेट से चिपके रहने से पुलिस भारी मानसिक तनाव झेल रही है। पहले पुलिस की नेटवर्किंग सिर्फ सेट के जरिए होती थी, लेकिन मोबाइल फोन के चलन के बाद दिन का चैन और रात की नींद उड़ने लगी है। तेजी से बढ़ रहे इस दिमागी बोझ से उन्हें हार्ट प्रॉब्लम, ब्लड प्रेशर व शुगर जैसी बीमारियां जकड़ रही हैं। उनकी मेडिकल जांच के आंकड़े भी काफी चौंकाने वाले सामने आए हैं। इनमें 45 फीसद पुलिसकर्मी बीपी व शुगर के मरीज निकले। 14 प्रतिशत गंभीर हृदय रोग, मानसिक रोग व कैंसर जैसी बीमारी से ग्रस्त पाए गए।

आम तौर पर पुलिस के पास दो मोबाइल फोन होते हैं। इनमें एक सीयूजी सुविधा का सरकारी फोन शामिल होता  है। इसके अलावा ड्यूटी के दौरान वायरलेस सेट होना भी अनिवार्य है, जिससे सतत् संदेश प्रसारित होते हैं। आला अफसर हों या सिपाही सभी को इन संचार माध्यमों से जुड़े रहना एक तरह से एक आवश्यक ‘मजबूरी” बन गई है, लेकिन संचार के ये आधुनिक उपकरण उनके लिए मानसिक तनाव का कारण भी बन रहे हैं, जिसके नतीजे मेडिकल जांच में गंभीर बीमारी के रूप में सामने आने लगे हैं।

पुलिस के उच्च अधिकारी सुबह से रात तक रोजाना वे करीब 400 फोन कॉल्स रिसीव-क करते हैं। इसके अतिरिक्त वायरलेस सेट से सतत् संपर्क में बने रहते हैं। सेट पर रोजाना करीब सौ बार संदेश देना पड़ता है। कभी-कभी आधी रात को भी लोग फोन करने में गुरेज नहीं करते। इससे झुंझलाहट तो होती है।

सख्त ड्यूटी

सख्त ड्यूटी होने के कारण पुलिस वाले अपने परिवार को भी समय नहीं दे पाते। बच्चों के साथ कुछ पल नहीं गुजार पाने के कारण तनाव बरकरार रहता है। हालात यह हैं कि सिपाही, हवलदार तो दूर अधिकतर पुलिस अफसर भी स्कूल में होने वाली पैरेंट्स मीटिंग तक में नहीं पहुंच पाते। ऐसी स्थिति में उनकी पत्नी या परिवार के किसी और सदस्य को स्कूल जाना पड़ता है।

एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी का कहना है कि पुलिस में नौकरी और परिवार के बीच सामंजस्य की लड़ाई चलती रहती है। क्योंकि पुलिस ही एक मात्र ऐसा विभाग है जहां छुट्टियां काफी कम हैं। त्योहारों के दौरान जब सारे लोग अपने परिवारों के साथ होते हैं उस दौरान सिपाही से लेकर पुलिस अफसर ड्यूटी पर होते हैं। इसको लेकर अक्सर परिवार में समस्या हो जाती है। तनाव के क्षणों में जब परिवार को या पुलिसकर्मी को अपनों की जरूरत होती है तो वे दूर होते हैं। कभी-कभी यही अकेलापन पुलिसकर्मियों व अफसरों पर भारी पड़ जाता है।

‘छुट्टी है बड़ी समस्या पुलिसकर्मियों को’

मामले में यूपी पुलिस कर्मचारी परिषद के महासचिव अविनाश पाठक कहते हैं कि साप्ताहिक अवकाश और सार्वजनिक अवकाश को मिला लें तो साल भर में पुलिसकर्मी के पास 106 छुट्टियां होती हैं. लेकिन उन्हें बमुश्किल 70 छुट्टियां ही मिल पाती हैं, इसमें ज्यादातर साप्ताहिक अवकाश ही हैं. इन छूटी छुट्टियों का लाभ भी उन्हें किसी तरह का नहीं मिलता है. वह कहते हैं कि अगर किसी के घर में कोई आकस्मिक समस्या आ जाए तो भी अधिकारी छुट्टी जल्दी मंजूर नहीं करते. अपना हवाला देते हुए कहते हैं कि मेरी ही शादी थी मेरे पास 5 से 6 महीने की छुट्टी बाकी थी. मैंने अर्जी 1 महीने की छुट्टी के लिए दी लेकिन छुट्टी मिली सिर्फ एक दिन की. मेरी पोस्टिंग उन दिनों झांसी में थी और बारात मिर्जापुर जानी थी. आप बताइए क्या यह व्यवहारिक है।

12 में से 6 घंटे फोन-सुनने, जवाब देने में लगते हैं

एक पुलिसकर्मी की दिनचर्या सुबह 5 बजे से शुरू हो जाती है, लेकिन सुबह 9 बजे से रात 10 बजे तक वे लगातार सेट व मोबाइल फोन दोनों के जरिए कम्युनिकेशन करते रहते हैं। औसतन इन 12 घंटों में करीब 6 घंटे उनके सेट-फोन रिसीव करने, कॉल बैक करने में गुजर जाते हैं। फोन पर संपर्क में बने रहने का सिलसिला रात 1 बजे तक बना रहता है, लेकिन कभी-कभी गंभीर घटना होने पर रात 3 बजे भी फोन रिसीव करना पड़ता है।

लगातार फोन, सेट के संपर्क में रहने से व्यक्ति में चिड़चिड़ापन बढ़ने लगता है। इससे वह अवसाद में जाने लगता है। अवसाद बढ़ने पर ब्लड प्रेशर, शुगर की समस्या शुरू हो जाती है। साथ ही हार्ट प्राब्लम व स्ट्रोक तक की शिकायत होने लगती है। इसके लिए जीवन शैली में बदलाव लाना बहुत जरूरी है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

You may have missed