आसान नहीं निचले पदों पर पुलिस में काम करना, झेलना पड़ रहा है तनाव

पुलिसकर्मियों की ड्यूटी का समय निर्धारित नहीं होने की वजह से उन पर हमेशा तनाव रहता है. पिछड़े व अल्पसंख्यक समुदाय से संबंध रखने वाले पुलिसकर्मियों को अपने ही सहकर्मियों से भेदभाव का सामना करना पड़ता है. सीनियर अधिकारी जूनियर्स से अपने निजी/घरेलू काम करने को कहते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तनाव का असर पुलिसकर्मियों के रवैये पर भी पड़ रहा है.
हर दूसरा पुलिसकर्मी ओवरटाइम करने को मजबूर नहीं मिलते हैं इसके पैसे 11 से 18 घंटे ड्यूटी करनी पड़ती है नगालैंड को छोड़ ज्यादातर राज्यों में.

भारत में निचले पदों पर पुलिस में काम करना आसान काम नहीं है. ‘स्टेटस ऑफ पोलिसिंग इन इंडिया 2019’ रिपोर्ट में यह बात सामने आयी है. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस जे चेलमेश्वर ने  एनजीओ कॉमन कॉज, लोकनीति और सीएसडीएस के गहन सर्वेक्षण के बाद तैयार यह रिपोर्ट जारी की.

10 में से आठ पुलिसकर्मी को ओवरटाइम के लिए नहीं मिलता पैसा
80 फीसदी पुलिसकर्मी आठ घंटे से ज्यादा ड्यूटी करते हैं
24 फीसदी पुलिसकर्मी 16 घंटे से ज्यादा काम करते हैं.
20 फीसदी को 13 से 16 घंटे तक ड्यूटी करनी पड़ती है
प्रशिक्षण का स्तर खराब, नहीं दर्ज करना जानते एफआइआर
निचले स्तर पर पुलिस प्रशिक्षण का स्तर काफी खराब है. बीते पांच सालों में सिर्फ छह प्रतिशत पुलिसवालों को कार्यकाल के दौरान प्रशिक्षण दिया गया. बाकी को सिर्फ भर्ती के वक्त ही प्रशिक्षण मिला है. प्रशिक्षण के अभाव में अधिकतर पुलिसकर्मियों को पता नहीं है कि अदालत में मामला कैसे पेश किया जाये या फिर एफआइआर किस तरह दर्ज की जाये.
यहां खराब प्रदर्शन 
राजस्थान
ओड़िशा
उत्तराखंड
यहां प्रदर्शन बेहतर
पश्चिम बंगाल
गुजरात
पंजाब
महाराष्ट्र देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां पुलिस को मिलता है साप्ताहिक अवकाश
कॉमन कॉज और सीएसडीएस की ‘स्टेटस ऑफ पोलिसिंग इन इंडिया 2019’ रिपोर्ट
एससी-एसटी एक्ट में दर्ज मामले अधिकतर झूठे
एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज अधिकतर मामले झूठे और किसी खास मकसद से दायर किये जाते हैं. वहीं हर पांच में एक पुलिसकर्मी को लगता है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा के दर्ज केस भी अधिकतर फर्जी होते हैं.
पुलिस का खौफ, केस नहीं होते दर्ज
रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों के मन में पुलिस का खौफ सबसे ज्यादा है. रिपोर्ट में पाया गया है कि कई अपराध सिर्फ इसलिए दर्ज नहीं हो रहे हैं क्योंकि लोग पुलिस के पास जाते हुए डरते हैं. अगर नाबालिग बच्चे किसी अपराध में पकड़े जाते हैं तो उनके साथ वयस्क अपराधियों जैसा सुलूक किया जाता है. उसी तरह महिलाओं के प्रति पुलिसवालों में संवेदनशीलता की कमी के चलते मामले दर्ज नहीं हो पा रहे हैं.
कई थानों में फोन और अपनी गाड़ी भी नहीं
21 राज्यों में किया गया है सर्वे
12,000 पुलिसकर्मी व उनके परिवार के 11,000 लोगों को सर्वे में किया गया शामिल
70 थानों में वायरलेस नहीं, 224 में नहीं हैं फोन, 24 थानों में न तो फोन है और न ही वायरलेस
240 थानों में नहीं है कोई वाहन, देश के 12 % थानों में पानी नहीं
80 % पुलिसकर्मियों को लगता है कि अपराध स्वीकार कराने के लिए अपराधियों को पीटना गलत नहीं
20 % पुलिसकर्मी मानते हैं कि खतरनाक अपराधियों के लीगल ट्रायल से अच्छा है उनको मार देना
43 % पुलिसकर्मी सोचते हैं कि रेप के आरोपी को भीड़ द्वारा सजा देना स्वाभाविक बात
35 % पुलिसकर्मी मानते हैं कि गोहत्या के मामलों में भीड़ द्वारा दोषियों को सजा देना स्वाभाविक
40 % पुलिसकर्मियों का कहना है कि अपराध की जांच में पुलिस पर दबाव सबसे बड़ी बाधा
40 % पुलिसकर्मियों को लगता है कि आम लोग पुलिस से संपर्क करने में हिचकते हैं, भले ही उन्हें पुलिस की जरूरत हो

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