मोबाईल की घनघनाहट और तनावग्रस्त पुलिसकर्मी

Abhinav Sharma
Director News Investigation

जहाँ मोबाईल फोन सुविधा का कारण है वहीँ पर पुलिस के लिए मोबाईल फोन सरदर्दी का कर्ण भी है. पहले पुलिस की नेटवर्किंग सिर्फ सेट के जरिए होती थी, लेकिन मोबाइल फोन के चलन के बाद दिन का चैन और रात की नींद उड़ने लगी है।  देखा जाये तो दिन  के 24 घंटे में से 12 घंटे मोबाइल फोन घनघनाने के साथ ही इस दौरान दिन भर चीखने वाले वायरलेस सेट से चिपके रहने से पुलिस भारी मानसिक तनाव झेल रही है।  तेजी से बढ़ रहे इस दिमागी बोझ से उन्हें हार्ट प्रॉब्लम, ब्लड प्रेशर व शुगर जैसी बीमारियां जकड़ रही हैं। उनकी मेडिकल जांच के आंकड़े भी काफी चौंकाने वाले सामने आए हैं। इनमें 45 फीसद पुलिसकर्मी बीपी व शुगर के मरीज निकले। 14 प्रतिशत गंभीर हृदय रोग, मानसिक रोग व कैंसर जैसी बीमारी से ग्रस्त पाए गए।

करीब 400 कॉल रोजाना

एक एएसपीर बताते हैं कि सुबह से रात तक रोजाना वे करीब 400 फोन कॉल्स रिसीव-बेक करते हैं। इसके अतिरिक्त वायरलेस सेट से सतत् संपर्क में बने रहते हैं। सेट पर रोजाना करीब सौ बार संदेश देना पड़ता है। कभी-कभी आधी रात को भी लोग फोन करने में गुरेज नहीं करते। इससे झुंझलाहट तो होती है।

परिवार को भी नहीं दे पाते समय

सख्त ड्यूटी होने के कारण पुलिस वाले अपने परिवार को भी समय नहीं दे पाते। बच्चों के साथ कुछ पल नहीं गुजार पाने के कारण तनाव बरकरार रहता है। हालात यह हैं कि सिपाही, हवलदार तो दूर अधिकतर पुलिस अफसर भी स्कूल में होने वाली पैरेंट्स मीटिंग तक में नहीं पहुंच पाते। ऐसी स्थिति में उनकी पत्नी या परिवार के किसी और सदस्य को स्कूल जाना पड़ता है।

अक्सर पुलिस के पास दो मोबाइल फोन होते हैं। इनमें एक सीयूजी सुविधा का सरकारी फोन शामिल है। इसके अलावा ड्यूटी के दौरान वायरलेस सेट होना भी अनिवार्य है, जिससे सतत् संदेश प्रसारित होते हैं। आला अफसर हों या सिपाही सभी को इन संचार माध्यमों से जुड़े रहना एक तरह से एक आवश्यक ‘मजबूरी” बन गई है, लेकिन संचार के ये आधुनिक उपकरण उनके लिए मानसिक तनाव का कारण भी बन रहे हैं, जिसके नतीजे मेडिकल जांच में गंभीर बीमारी के रूप में सामने आने लगे हैं।

12 में से 6 घंटे फोन-सुनने, जवाब देने में लगते हैं

एसपी नॉर्थ भोपाल अरविंद सक्सेना बताते हैं कि उनकी दिनचर्या सुबह 7 बजे से शुरू हो जाती है, लेकिन सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक वे लगातार सेट व मोबाइल फोन दोनों के जरिए कम्युनिकेशन करते रहते हैं। औसतन इन 12 घंटों में करीब 6 घंटे उनके सेट-फोन रिसीव करने, कॉल बैक करने में गुजर जाते हैं। फोन पर संपर्क में बने रहने का सिलसिला रात 1 बजे तक बना रहता है, लेकिन कभी-कभी गंभीर घटना होने पर रात 3 बजे भी फोन रिसीव करना पड़ता है।

एक दर्जन की मौत, 142 गंभीर बीमार

जानकारी के मुताबिक इस वर्ष एक दर्जन पुलिसकर्मचारियों की मौत हार्ट अटैक की वजह से हो गई है। उधर पुलिस स्वास्थ्य योजना के तहत छह माह पहले फ्री कैम्प लगा था। इसमें 45-58 आयु वर्ग के 950 लोगों की जांच की गई। इसमें 142 पुलिसकर्मी कैंसर, हृदय रोग व गंभीर मानसिक बीमारी का शिकार निकले। इसके अलावा शेष में से 45 फीसद ब्लड प्रेशर, शुगर जैसी बीमारी की चपेट में पाए गए। अब दूसरे चरण में 40 तक की आयु वर्ग के लोगों का कैम्प लगाने की तैयारी की जा रही है।

जा रही जान

8 सितंबर 13: बैरसिया में पदस्थ हवलदार सालिगराम दुबे की हृदयाघात से मौत।

1 सितंबर 13: लालपरेड मैदान में युवा संकल्प सम्मेलन में तैनात शाहपुरा थाने के हवलदार कृष्ण कुमार शर्मा की हार्ट अटैक से मृत्यु।

सितंबर 13: भोपाल के ही कोतवाली थाने में पदस्थ एएसआई पीएन तिवारी की हृदयाघात से मौत।

14 दिसंबर 13: यातायात थाने में पदस्थ एसआई एके सिंह की हार्ट अटैक से मौत।

लगातार फोन, सेट के संपर्क में रहने से व्यक्ति में चिड़चिड़ापन बढ़ने लगता है। इससे वह अवसाद में जाने लगता है। अवसाद बढ़ने पर ब्लड प्रेशर, शुगर की समस्या शुरू हो जाती है। साथ ही हार्ट प्राब्लम व स्ट्रोक तक की शिकायत होने लगती है। इसके लिए जीवन शैली में बदलाव लाना बहुत जरूरी है।

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